ये कलाकृतियाँ जिन लोगों के संग्रह में हैं ;
मेरा यह चित्र "राम-कृष्ण-शिव" जिसे मैं लोहिया के पढ़ने के बाद बनाया था और उन की अवधारणा थी कि यह हमारे देश के सांस्कृतिक स्वरूप है जिसे हमने भगवान बना रखा है । और आप देख पा रहे होंगे कि इनके कैरेक्टरिस्टिक को मैंने रंगों के माध्यम से दर्शाने की कोशिश की है जिसमें मेरी तत्कालीन कला समझ मैं प्रेरित किया था कि मैं उन्हें चुन चित्रित करूं।
कालांतर में समाजवाद के स्वरूप को देख कर लिया भैया का समाजवाद तिरोहित हो गया और नए समाजवाद की अवधारणा से निहायत नफरत और मैंने फिर अपने चित्रों की दिशा गांव की ओर मोड़ दी थी दोबारा समाजवाद की तरफ मुड़ के भी नहीं देखा? जिस के क्या कारण हैं उसका उल्लेख यहां आवश्यक नहीं है!
जिस तरह से इनकी भगवान होने की अवधारणा चल रही है उससे काफी तरह से सामाजिक स्वरूपों में घालमेल मिला जो बिल्कुल इस तरह के चित्रों से विमुख कर दिया।
मेरा यह चित्र उन दिनों के मेरे कला कार्य का एक प्रचलित शैली का चित्र है जिसे भारत सरकार के पर्यटन विभाग में किसी महत्वपूर्ण स्थान पर लगा रखा है जिसे हम अब कई बार विशिष्ट अतिथियों के आगमन पर अखबारों में छपी उनकी तस्वीर के पृष्ठ भाग में देख पाते हैं।
यह कितनी विडंबना की बात है कि जिससे मैंने रचा है उसकी सूचना भी मुझे ठीक से नहीं है अब वह कहां है।
फिर भी कुछ के बारे में ताकि सनद रहे :
: संग्रह :
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श्री विनोद वर्मा, वरिष्ठ पत्रकार (रायपुर) अगस्त : 2023 |
मा शरद यादव (पूर्व केंद्रीय मंत्री)
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श्री दीपक चौधरी सिविल लाइन नई दिल्ली |
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