सन्दर्भ

सन्दर्भ ; ताकि सनद रहे !


"सन्दर्भ" के अंतर्गत मैं अपने चित्रों के बारे में आपको कुछ बताने का निर्णय लिया हूँ ? क्योंकि सामान्यतया मेरे चित्र सरल और सहज तो है लेकिन इनके भीतर ज़ो दर्द और संदेश भरा है वह हमारी दृष्टि में क्या है ? और उसे आप कैसे देखते हैं इन पर हम यहाँ एक सन्दर्भ शुरू करने चल रहे हैं जिससे मेरा ख़याल है कि दर्शकों को मेरे चित्रों को देखने में काफ़ी सुविधा होगी हालाँकि आप अपनी दृष्टि को देखने के लिए इस्तेमाल करें और कोई  :

आइये हम इन चित्रों को लेते हैं मेरे चित्र वैसे तो सहज और सरल हैं फिर भी उनकी पृष्ठभूमि में क्या है आपसे साझा करने का प्रयास करते हैं।

इसके साथ ही हम अपनी मूर्तियों से भी आपको अवगत कराएंगे जिसमें लकड़ी पत्थर और मिटटी तथा लोहे से बनी कलाकृतिया होंगी। 

यथा :

निहारिका 

ब्लैक मार्बल ऊंचाई 13 फ़ीट 
निहारिका-ब्लैक मार्बल ऊंचाई 13 फ़ीट निहारिका  ब्लैक मार्बल ऊंचाई 13 फ़ीट निहारिका  ब्लैक मार्बल ऊंचाई 13 फ़ीट निहारिका  ब्लैक मार्बल ऊंचाई 13 फ़ीट निहारिका  ब्लैक मार्बल ऊंचाई 13 फ़ीट निहारिका  ब्लैक मार्बल ऊंचाई 13 फ़ीट निहारिका  ब्लैक मार्बल ऊंचाई 13 फ़ीट निहारिका  ब्लैक मार्बल ऊंचाई 13 फ़ीट निहारिका  ब्लैक मार्बल ऊंचाई 13 फ़ीट निहारिका  ब्लैक मार्बल ऊंचाई 13 फ़ीट निहारिका  ब्लैक मार्बल ऊंचाई 13 फ़ीट निहारिका  ब्लैक मार्बल ऊंचाई 13 फ़ीट निहारिका  ब्लैक मार्बल ऊंचाई 13 फ़ीट निहारिका  ब्लैक मार्बल ऊंचाई 13 फ़ीट   ब्लैक मार्बल ऊंचाई 13 फ़ीट


मूर्तिकला की हमारी रुचि आरंभ से ही थी लेकिन जिस पाठ्यक्रम को मैं पढ़ रहा था उस पाठ्यक्रम में मूर्तिकला की कोई जगह नहीं थी। मेरे मन में यह मोह बना रहा कि मैं मूर्ति को भी बनाऊं। फिर मैंने इसे आरंभ किया था सबसे पहले खड़िया मिट्टी में मूर्तियां बनाने का काम आरंभ किया क्योंकि वह बहुत ही सॉफ्ट मीडियम था इसलिए सामान्य चाकू और नहन्नी साथ साथ और भी कई तरह के सामान्य टूल का इस्तेमाल करके हमने खड़िया मिट्टी से कई मूर्तियां बनाई और यह काम मैं Masters पूरा करने के साथ-साथ करता रहा। फिर धीरे-धीरे लकड़ी की तरफ़ बढा  और लकड़ी को काटने लगा यहां भी वही हुआ कि जो सामान्य तौर पर औजार मिल गए उनका ही इस्तेमाल कर लिया। इस तरह से हमने लकड़ी में कई आकार गढ़े जो उस समय जिनको प्रिय थे उन्हें भेंट कर दिया। इसके बाद मेरी नजर पड़ोस में चल रहे काम जिसमें पत्थर के बोल्डर डाले जा रहे थे। उस समय मेरे पड़ोस में एक नया पुल बन रहा था जिसकी सड़क ऊंची की गई थी। उसके किनारे किनारे इन बोल्डरों का जमाव किया जा रहा था, मैंने ठेकेदार से बात करके एक रेड स्टोन का लगभग 2 फीट बाई 10 इंच मोटा और डेढ़ फीट चौड़ा एक बोल्डर ले तो आया। अब सवाल आया कि इसमें कट कैसे किया जाए। आस पास कोई पत्थर काटने वाला नहीं था। कभी कभार जात और सिल को कुटते हुए उस कारीगर को देखा था जो गांव में घूम घूम कर के इस तरह के काम करते रहते हैं । पिताजी को यह सारे काम करते हुए अच्छा लगता था। कि मैं इसी में उलझा रहता था तो उन्होंने हमारे गांव के पड़ोस के लोहार से कह कर के कुछ छेनिया बनवा दी। फिर मैंने उससे काट काट कर के उस पत्थर में एक हनुमान की आकृति निकाली जो अभी भी मेरे गांव में सुरक्षित है कई लोगों ने उसे पूजा के लिए मांगा लेकिन हम ने मना कर दिया आज वह हमारे यहां एक कलाकृति के रूप में संग्रहित है। उसका चित्र में यहां लगाया। अब इसके पश्चात में नौकरी में आ गया फिर जिंदगी की दूसरी रफ्तार शुरू हुई जहां समाज और सरोकार ज्यादा प्रभावी होने लगे कला का महत्व दिन-ब-दिन कम होने लगा यह समय था 1980 का और आश्चर्यजनक बात यह है कि वहां मेरी नौकरी मेरी कला के बदौलत लगी थी। लेकिन परिवेश इस तरह का था कि कला पर वहां बात करने की गुंजाइश नहीं फिर भी मैंने अपने मिशन को नहीं छोड़ा जो भी मौका मिलता चित्र आदि की रचना निरंतर करता रहता।
यहां के 10 साल इस तरह से निकल गए जैसे पता ही नहीं चला। की कला की भी लोई इज्जत है। 



निहारिका ; ब्लैक मार्बल ऊंचाई 13 फ़ीट (अखिल भारतीय कला उत्सव गाज़ियाबाद -2014 में बनाया)
संग्रह ; गाज़ियाबाद विकास प्राधिकरण के द्वारा आनंद विहार दिल्ली और गाज़ियाबाद के तिराहे के पार्क में लगाई गयी है। 


हमलोग ब्लैक मार्बल ऊंचाई 13 फ़ीट (अखिल भारतीय कला उत्सव गाज़ियाबाद -2013 में बनाया)
संग्रह ; जिला मुख्यालयन गाज़ियाबाद में जिलाधिकारी कार्यालय के बहार प्रवेश द्वार के सामने पार्क में लगाई गयी है। 



गुजरी  ; ब्लैक मार्बल ऊंचाई 6  फ़ीट (अखिल भारतीय कला उत्सव गाज़ियाबाद -2014 में बनाया)
संग्रह ; गाज़ियाबाद विकास प्राधिकरण के द्वारा कलाधाम कविनगर गाज़ियाबाद के तिराहे के पर लगाई गयी है। 



मेल फीमेल   ; ब्लैक मार्बल ऊंचाई  लगभग 6  फ़ीट (अखिल भारतीय कला उत्सव गाज़ियाबाद -2007  में बनाया)
संग्रह ; रामप्रस्थ पब्लिक स्कूल में लगाई गयी है। 


आरंभिक पत्थर में काम जिसका जिक्र मैंने ऊपर भूमिका किया है। 
संग्रह ; निजी (ग्राम ;बिशुनपुर, लालबाजार जिला ; जौनपुर उ.प्र। 


क्रिएटिव  ; ब्लैक मार्बल ऊंचाई 6  फ़ीट (अखिल भारतीय कला उत्सव गाज़ियाबाद -2014 में बनाया)
संग्रह ; गाज़ियाबाद विकास प्राधिकरण के द्वारा मूर्तिकला पार्क संजय नगर गाज़ियाबाद में लगाई गयी है। 



बनी -ठनी  ; ब्लैक मार्बल ऊंचाई 3  फ़ीट (अखिल भारतीय कला उत्सव गाज़ियाबाद -2014 में बनाया)
संग्रह ;निजी (आर - 24 राजकुंज , राजनगर, गाज़ियाबाद)

चित्र :
सखियां
शीर्षक ; सखियां, माध्यम ; कैनवास पर आयल कलर। 
साइज ; ऊंचाई - 45 इंच चौड़ाई - 35 इंच  
वर्ष ; 2002, निजी संग्रह नई दिल्ली
शीर्षक ; सखियां। 
माध्यम ; कैनवास पर आयल कलर। 
साइज ; ऊंचाई - 45 इंच चौड़ाई - 35 इंच  
वर्ष ; 2002
निजी संग्रह नई दिल्ली

कथ्य :
जैसा कि आप जानते हैं भारत ग्रामीण प्रधान देश है और ग्रामीण संस्कृति ही भारत की आत्मा है क्योंकि जो खुला माहौल गांव के मध्य बाग बगीचा और खेत खलिहान में उपलब्ध होता है वह महानगरों के चकाचौंध वाले पार्को महलों और क्लबों इत्यादि में वह संभव ही नहीं होता।
यह चित्र कुछ इसी तरह की परिस्थितियों में देखा गया और उसे निरूपित किया गया है जब गांव की अमराईयों में ग्रामीण समाज की एक उम्र की महिलाएं एक साथ होती है तो उनके संवाद उनके आव भाव बहुत ही सहज होते हैं जो किसी की भी मन को आसानी से अपनी तरफ आकर्षित कर लेते हैं वहां पर कोई बनावट नहीं होती कोई दिखावा नहीं होता सादगी का ऐसा स्वरूप निश्चित तौर पर ग्रामीण परिवेश में यदा-कदा दिखाई दे जाता है।
वैसे तो ग्रामीण परिवेश का जनमानस अपने कामों में व्यस्त होता है खेत खलिहान घरेलू काम धंधे पानी लाना और खेतों से घास और जरूरी सामानों का ले आना ले जाना लेकिन जब भी वे फुर्सत में होते हैं तो उनकी मनोभावना को समझना और उनके साथ कुछ पल जीना निश्चित तौर पर सौंदर्य बोध का अद्भुत नमूना होता है।
काल्पनिक तौर पर इन चित्रों की रचना करना बहुत ही मुश्किल होता है क्योंकि वहां पर दिखावा ज्यादा होता है और मौलिकता कम।
मैं जब जब भी ऐसे दृश्यों को देखता हूं तो मेरे मन में इन्हें रचने की उत्कंठा प्रबल हो जाती है कोशिश करता हूं कि उनसे भी इस परिवेश और वातावरण के बारे में समझा जाए लेकिन अधिकांशतया यह संभव नहीं हो पाता। हारी बीमारी का भी अपना एक परिवेश होता है जिसमें समाज के विभिन्न वर्गों के लोग और उनकी आसपास की परिस्थितियां बहुत महत्वपूर्ण होती है यही कारण है कि विभिन्न खंडों में विभाजित समाज प्राकृतिक संसाधनों के साथ बिना भेदभाव के एक साथ होता है।
क्या अमीर क्या गरीब क्या मजदूर क्या मालिक सबके लिए प्राकृतिक रमणीयता वरदान होती है।
जब वे आत्मविश्वास के साथ खेतों में एक साथ होते हैं या इसी सांस्कृतिक अवसरों पर इकट्ठा होते हैं या खाली समय पर आपस में बातचीत कर रहे होते हैं तो अक्सर ऐसे दृश्य में दिखाई दे जाते हैं।
उम्र के इस पड़ाव पर ग्रामीण महिलाएं कुछ दिन ससुराल और कुछ दिन मायके में होती हैं निश्चित तौर पर जब वह मायके में होती हैं तो उनकी अपनी एक साझी खुशी और लंबी लंबी दास्तान उन्हें एक जगह बांध करके रखती है जिसमें हम उनके संवाद से रूबरू तो नहीं हो पाते लेकिन एक चित्रकार के नाते जो परिवेश दिखता है वही हमारे चित्रों के लिए विषय बन जाता है।
तो यहां पर हम यह कह सकते हैं कि सखियां बचपन से बना हुआ दोस्ताना संबंध है जो इसी तरह से परिलक्षित होता है जब वह एक साथ एक जगह इकट्ठा होती है मैंने इस चित्र में उसी दृश्य को संजोने का प्रयास किया है।

-डॉ लाल रत्नाकर 
---------------------------------------------------------

शीर्षक ; दुल्हन ,माध्यम ; हैंडमेड पेपर पेन 
साइज ; ऊंचाई - 7  इंच चौड़ाई - 5 इंच  
वर्ष ; 2004
दुल्हन 
शीर्षक ; दुल्हन 
माध्यम ; हैंडमेड पेपर पेन 
साइज ; ऊंचाई - 7  इंच चौड़ाई - 5 इंच  
वर्ष ; 2004

कथ्य ; "दुल्हन" यह कहते हुए हमें उतनी परेशानी नहीं होती की रेखाँकन के बगैर अच्छे चित्र का निर्माण संभव नहीं है.
यही कारण है कि मैं हमेशा जो कुछ समझ में आता है उसे रेखाओं से बाधता रहता हूं।

यही कारण है कि मेरे पास हजारों की संख्या में रेखांकन मौजूद है। कई बार ऐसा होता है कि एक ही आकृति के आसपास अनेकों स्केच बन जाते हैं। विषय की विविधता की बजाए एकरूपता ज्यादा आ जाती है। यह मूल रूप से मुझे लगता है कि जिस चित्र को हम बना रहे होते हैं उसके पूरे भाव उस चित्र में नहीं आते या व्यस्तता की वजह से वह पूर्ण नहीं हो पाता इसलिए हमें उसी को दोहराना पड़ता है।

इसका कतई मतलब नहीं है कि हम जो चित्र बनाते हैं हमारे रेखांकन उसमें यथावत उपयोग में आ जाते हो चित्र की पृष्ठभूमि और उसकी साइज पर बहुत कुछ निर्भर करता है कि हम कैसा कंपोजीशन ले रहे हैं।
उन्ही चित्रों में से यह चित्र भी है जिसे यहाँ लगा रहा हूं.
-------------
कलादीर्घा
शीर्षक ; कलादीर्घा। 
माध्यम ; कैनवास पर आयल कलर। 
साइज ; ऊंचाई - 45 इंच चौड़ाई - 35 इंच  (फ्रेम के अतिरिक्त)
वर्ष ; 2000 
शीर्षक ; कला दीर्घा, माध्यम ; कैनवास पर आयल कलर। 
साइज ; ऊंचाई - 45 इंच चौड़ाई - 35 इंच  (फ्रेम के अतिरिक्त)
वर्ष ; 2000 

कथ्य ; 
मुझे याद है श्री राजेंद्र यादव के हंस कार्यालय में बैठा था और उन्हें यह चिंता थी की मैं कुछ ऐसा नहीं कर रहा हूँ जिसमें गाँव के सिवा और कुछ हो ? उनकी चिंता मुझे चिंतित की बातचीत में उन्होंने ही सुझाया की बुर्के वाली महिलायें न्यूड चित्रों की प्रदर्शनी देख रही हों यह बात तो उस समय अटपटी लगी क्योंकि वैसे भी मुस्लिम महिलाओं का कला प्रदर्शनी देखना या दिखाना कुछ अजीब लगा था। लेकिन जब न्यूड चित्रों की प्रदर्शनी की बात आयी तो निश्चित तौर पर एक नया विचार आया मैंने केवल इतना अपना आइडिया जोड़ा की एक घूंघट वाली भारतीय ग्रामीण महिला को भी इस कला दीर्घा में ले आया इसके पीछे मेरा आशय यह था की मेरे चित्र गाँव के परिवेश के होते हैं तो ग्रामीण महिला उस विषय को संजोये रहेगी। दूसरे किसी तरह के भेदभाव से भी मैं बचा रहूंगा।

यह चित्र जब बना रहा था तब परिवार में भी इस तरह के के चित्र की रचना पर आपत्ति हुयी मेरी पत्नी का झुकाव हमेशा ग्रामीण महिलाओं के विविध रूपों पर रहता है मैं इसबात के लिए उनका बहुत आभारी हूँ की उन्होंने मुझे इस अछूते विषय की सादगी की और मुझे आकर्षित की हैं।  इस चित्र पर उनको नाराज़गी स्वाभाविक थी बच्चे भी बड़े हो रहे थे और मैं घर में इस तरह का चित्र बनाऊं सो अच्छा नहीं है।  लेकिन जब उनको बताया की श्री राजेंद्र यादव का यह आइडिया है तो वे कुछ नरम पड़ीं और उन्होंने इस दुल्हन को जोड़ने का सुझाव दिया। हालंकि राजेंद्र जी को भी यह चित्र पसंद आया और उन्होंने हंस के कवर पर इसको लगाया।

उस समय तो नहीं लेकिन जब यह चित्र तैयार हो गया तो उनकी मुस्लिम महिलाओं की प्रगतिगामी विचार की और आकर्षित करने की सोच और बहस आरम्भ करने का ख्याल मुझे भी उत्साहित किया और हमने अपने चित्रों में कुछ नए प्रयोग किये जिसे सराहा भी गया।


में कुछ नए प्रयोग किये जिसे सराहा भी गया।

आतंकवाद :
शीर्षक ; आतंकवाद । 
माध्यम ; कैनवास पर आयल कलर। 
साइज ; ऊंचाई - 45 इंच चौड़ाई - 35 इंच  (फ्रेम के अतिरिक्त)
वर्ष ; 2002 
शीर्षक ; आतंकवाद, माध्यम ; कैनवास पर आयल कलर। 
साइज ; ऊंचाई - 45 इंच चौड़ाई - 35 इंच  (फ्रेम के अतिरिक्त)
वर्ष ; 2002 
कथ्य ; 
मेरी यह तस्वीर कितनी प्रासंगिक है इसका अंदाजा आप लगाइए लेकिन इसको जब मैं बनाया था तो मुझे लग रहा था कि एक न एक दिन ऐसा होगा।क्योंकि जिस तरह के लोग राजनीति में सक्रिय हो रहे थे उन से यही अपेक्षा थी तस्वीरें वक्त के साथ रची जाती हैं उनमें रंग भरा जाता है जिससे वह उस समय की हस्ताक्षर बनती हैं।
अगर कला और साहित्य इन पर विचार करके नहीं रचा जा रहा है वह केवल श्रृंगार और मनोविनोद के लिए रचा जा रहा है तो साहित्य और कला का समकालीनता में कोई योगदान नहीं होता । क्योंकि कलाकार और साहित्यकार बराबर इस बात से चिंतित रहता है कि समाज किस दिशा में जा रहा है और उस समाज को प्रभावित करने वाले लोग कौन हैं. जिनपर उनकी नज़र होती है क्योंकि वह तंत्र समय के हस्ताक्षर होते हैं। इस तरह की रचनाएँ जब तैयार होती हैं तभी रचनाएँ या कलाकृतियां कालजई होती हैं।
राजनीति में मेरा विश्वास आरंभ से भले ना रहा हो लेकिन मेरा परिवेश बचपन से ही राजनीतिक रहा है। उस परिवेश से जो हमने देखा था उसमें राजनीति के बहुत सारे तत्व जो समय के साथ उजागर होते रहे और उनके दंश हम झेल और झेलते रहे हैं। जबकि हमारे समाज के अधिकांश लोग उसे उस तरह से नहीं समझे जिस तरह से जरुरत थी और है बहुत कम समझने वाले लोगों को उस समाज ने स्वीकार कर लिया और जिन्हे स्वीकार किया जाना था उन्हें नकार दिया गया और कमोवेश आज भी वैसे ही है ? जबकि वे कर सकते थे जिन्हें नकारा गया वे समाज को जोड़कर चल भी सकते थे। इस तरह के लोग जिन्होंने सांस्कृतिक समता को समझा ही नहीं बल्कि वे सांस्कृतिक साम्राजयवाद के शिकार हुए हैं और अपने परिवारों तक सिमट कर रह गए हैं ?
यह अलग बात है कि राजनीति को कालांतर में लोगों ने अपने व्यवसाय के रूप में इस्तेमाल किया और उन्होंने अपने को एक मुकाम पर ले जाकर के खड़ा तो कर लिया उनका वर्ग बदल गया लेकिन क्या राजनीती केवल उनके परिवर्तन के लिए थी ? हो सकता है कि वह समय के साथ राजनीतिक रुप से लाभान्वित हुए हों लेकिन उन्होंने सामाजिक राजनीति को क्या दिया है यह आज बहस का विषय है ? उनका योगदान हमारे इतिहास में क्या केवल नाम मात्र का होगा या वह भी नहीं पर उनके राजनीतिक विचार उस समय के लिए कितने सराहनीय होंगे या निंदनीय यह अलग बात है पर जिस समाज की राजनितिक दिशा अन्धकार में उनकी वजह से चली गयी उसका जवाबदेह कौन होगा।
आज जब हम इन बातों पर विचार करते हैं तो मुझे लगता है कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा पालने वाले लोग निश्चित रूप से अपने इर्द-गिर्द ऐसे लोगों से घिरे हुए हैं जो उनको अहंकार और गलत राह की ओर ले जाने का काम करते दिख रहे हैं। खासकर के बहुजन जातियों के लोगों के साथ अधिकतर ऐसा ही परिवेश बना हुआ है इसके निहितार्थ क्या हैं यह समझना आसान नहीं है।

मेरे चित्र उन्ही के क्रिया कलापों पर संदर्भित हैं इस तरह की कलाएं उन्हें समझनी होंगी अन्यथा पौराणिक उपाख्यान उन्हें नासमझ ही बनाये रहेंगे क्योंकि उअन्कि रचना ही उन्हें मूढ़ और कुढ़ बनाये रखने के लिए की गयी हैं। ये तस्वीरें दिमाग खोलती हैं इनकी रचना उस पाखंडी समाज के रहस्य खोलती हैं तभी तो हम उसी तरह की अभिव्यक्ति के आदी हैं।

2002 में हुए गुजरात  के वीभत्स राजनितिक स्वरुप और उभरते खतरे को आंकते हुए इसे बनाया था जिसमें वह चेहरा जो गुजरात का प्रतिनिधित्व कर रहा था उस पर आक्षेपित (ढकता हुआ) होता हुआ चेहरा दर्शाने का प्रयास किया गया है और उसके नेतृत्व में पनपता आतंक और नए तरह का घिनौना आतंकवाद जिसका आज पूरा देश दंश झेल रहा है। और यहीं से बनती है कला की पहचान और होती है उसकी आवश्यकता ?  

ताकि समझ बनी रहे 
साहित्य सृजन की भूमि है तो कविता उसकी फसल : उसी तरह विविध कलाएं भी -
मेरी कविता 
-डॉ.लाल रत्नाकर 

मैंने कवि होने का 
मन जरूर बनाया है 
पर मेरी कवितायें 
परी लोक की कवितायें नहीं होंगी 
यह मैंने निश्चित किया है 
मेरे इस रचना संसार में 
समाज की सुंदरता के साथ-साथ  
उसकी विद्रूपता और कुटिलता भी होगी 
पर यह पक्का है कि विद्वतनुमा समाज के 
ठेकेदार इन्हें हो सकता है कविता ही 
न होने का फरमान दे दें  
या तो वो ये कह दें की जो इन्हें सुनेगा 
उसके कानों में शीशे को पिघला कर और 
उसके टुकड़ों को नुकीला करके डाला जाएगा 
हो सकता है कुछ लोग भयभीत भी हो जाएँ 
मेरी कविता से और न सुने पर 
वही सबसे ज्यादा व्याकुल होकर 
मेरी कविताओं का मंथन कर रहे होंगें !
लेकिन वो जिनके लिए 
मैं ये कवितायें लिख रहा हूँ 
वो कहीं परी लोक के गीत गुन रहे होंगे। 
और अपने विनाश के हुनर गढ़ रहे होंगे !



-डॉ लाल रत्नाकर 


कोई टिप्पणी नहीं: